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सोमवार, 22 अप्रैल 2013

"ज्योतिष सेवा सदन का प्रादुर्भाव ?एक नजर }"

"ज्योतिष सेवा सदन का प्रादुर्भाव ?एक नजर }" --ज्योतिष सेवा सदन --एक व्यक्तिगत सेवा सदन है । जिसका निर्माण -२०१० में हुआ । इस सदन का ध्येय  केवल देश -विदेशों रह रहे मित्रों के लिए है । कोई भी मित्र बनकर निःशुल्क ज्योतिष सेवा सदन के सदस्य बन बन सकते हैं । ज्योतिष सेवा सदन -धन की लालसा से नहीं  अपितु प्रेम की जिज्ञासा से यह सेवा प्रदान करता है । शुल्क इसलिए रखा गया है -ताकि जरुरत लोग ही मित्र बनकर सेवा प्राप्त करें । जहाँ माँ सरस्वती होंगीं वहां माँ लक्ष्मी को आना ही पड़ता है । अर्थात --जब ज्योतिष सेवा सदन आप मित्रों के हित में कार्य करेगा ,तथा उस हित से आपको लाभ होगा तो आप भी ज्योतिष सेवा सदन के लिए सोचेंगें । प्राचीन युगों से ही ब्राह्मण को-दक्षिणा यग्य के उपरांत ही दी जाती है जैसे -किसी भी पूजा में -सर्वप्रथम सामग्री आती है ,पूजा के उपरांत हवन होता है--किन्तु भूदेव को दक्षिणा यग्य सम्बंधित समस्त कार्य होने के उपरांत ही मिलती है ।अतः हम भी उसी परम्परा के अनुसार कार्य करना चाहते हैं ।---विद्या ददाति विनयम विनया द्याति पात्रताम ।

                                                                    पात्रत्वा धन माप्नोति,धनात धर्मः ततः सुखम ।।

भाव -विद्या से विनय आनी चाहिए,और जब विनम्रता आती है --तो लोग सराहना करते हैं,जब सराहना होती है -तो सम्मान भी मिलता है अर्थात समयानुसार मदद भी मिलती है ,और जब मदद या सम्मान मिलता है -तो लोग धर्म अर्थात हित के कार्य भी करते हैं ।।

------आशा ही नहीं उम्मीद है --ज्योतिष सेवा सदन के निर्माता -पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री {किशनपुरी धर्मशाला देहल गेट मेरठ । के इन बातों पर भरोसा करेंगें ।।

हमारे विचार से ---कुछ माँ के गर्भ से रिश्ते- नाते बनाकर आते हैं,कुछ इस भूमंडल पर बनाते हैं ,अतः जो भी मित्र - ज्योतिष सेवा सदन से जुड़ते हैं -वो सभी मित्र पराये होकर भी अपने होते हैं ,जुड़े हुए सभी मित्रों को हम वही सम्मान देते हैं --जैसे अपनों को देते हैं ।

-----भ्रमित न हों ---ज्योतिष सेवा सदन -आपके भाग्य को नहीं बदल देगा ,बल्कि आपकी कुंडली में प्राप्त भोग्य को ही दर्शायेगा । आपने जो किया है--आप जो पूर्व संचित कर रखा है -उस बात की ही जानकारी देगा ज्योतिष सेवा सदन ---कर्मण्ये बधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ----किन्तु -ये भी सत्य है -ज्योतिष दूरगामी चीज है जो प्रलोभन देती है ,राह बताती है ,एक सकून देती है--और सकून किसको नहीं चाहिए --हम चाहकर भी ज्योतिष को विस्मृत नहीं कर सकते हैं । अतः ज्योतिष का लाभ लेना भी चाहिए -और बताये हुए मार्ग पर चलना भी चाहिए ।

------ज्योतिष सेवा सदन --से जुड़ें ,अपने भविष्य में घटित घटना से कैसे बचें ,एवं हमारी आपकी दुबारा बातचीत हो या न हो -किन्तु वार्षिक राशिफल ,व्यापर का आकलन ,ज्योतिष एवं कर्मकांड के लेखों के माध्यम से नित्य हम आपतक पहुचते रहेंगें । हमें आप अपना परिवार का सदस्य समझें ।

----ध्यान दें ----ज्योतिष सेवा निःशुल्क है आजीवन निःशुल्क रहेगी ।

      {१}-जब भी आपको लगे कि हमें ज्योतिष सम्बंधित सलाह लेनी चाहिए --आप उक्त नंबरों पर प्राप्त करें --9897701636 ,09358885616 --।।

      {२}-आप अपनी स्वच्छा से आजीवन सदस्य बनें ,इसके लिए आपको परेशान नहीं करेगा -ज्योतिष सेवा सदन ।।

    {३}-अगर आपको लगता है --ज्योतिष सेवा सदन आपके हित में कार्य कर रहा है ,तो आप इसकी सराहना करें ,इससे जुड़ें --अन्यथा एकबार तो सेवा अवश्य निःशुल्क प्राप्त करें ।।

-----हमें जितना चाहिए वो परमात्मा की आप मित्रों की कृपा से प्राप्त है । २३ धंटे-हम स्वार्थ के लिए जीते हैं -कितु एक धंटा आप मित्रों के लिए जीना चाहते हैं यही सोच है हमारी ।।

   भवदीय ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "          
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शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

कुंडली मिलान का प्रथम "वर्ण "विचार ?-

---जातकों की कुंडली मिलान में सर्व प्रथम "वर्ण का मिलान देखा जाता है --अर्थात जातीय कर्म ,गुण धर्म ,स्वभाव एवं उत्तम प्रीति रहती है ---सही वर्णों के मिलान होने पर ----अन्यथा मध्यम स्नेह और प्रेम का जीवन में आभाव सा रहता है ।
-------कर्कमीनालयोविप्राः सिंहो मेषो धनुर्न्रेपाः ।
           कन्या वृष मृगा वैश्यः शूद्रा युग्म तुला घटाः ।।
  ------भाव =कर्क ,मीन,वृश्चिक ये तीन राशियाँ -ब्राह्मण वर्ण की हैं ।--मेष ,सिंह ,धनु क्षत्रिय वर्ण की ,कन्या ,वृष ,मकर वैश्य वर्ण की और मिथुन ,तुला ,कुम्भ ये तीनो राशियाँ शूद्र वर्ण की शात्रों में कही गई हैं ।
    ----अर्थात ----यदि वर -कन्या समान वर्ण वाली राशियों में जन्मे हों तो उत्तम रहते हैं ---या कन्या से वर का वर्ण उत्तम हो तो अति उत्तम मानते हैं --परन्तु कन्या से वर का हीन वर्ण हो तो --दाम्पत्य जीवन में नीरसता रहती है ।
                 "हीन वर्णों यदा राशि राशीशो वर्ण उत्तमः ।
                  तदा राशीश्वरो ग्राह्यस्तद राशि चैव चिन्तयेत ।।
अतः वर -कन्या में वर्ण दोष होते हुए भी मान्य नहीं है ,क्योंकि रशिशों के स्वामियों की प्रतिकूलता है तो ----।।    नोट --दाम्पत्य जीवन सुन्दर हो इसलिए कुंडली का सही मिलान बहुत ही जरुरी है ---जबकि जोड़ा तो विधाता ने पहले ही बना दिया ?
----प्रेषकः पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री "{मेरठ -भारत }

"ग्रहमैत्री"अर्थात वैवाहिक अनुभूति "?---

"ग्रहमैत्री"अर्थात वैवाहिक अनुभूति "?-----कुंडली मिलान का वास्तविक विचार वैवाहिक जीवन सुखद हो ,सरस और प्रेम से ओत प्रोत हो ----किन्तु ये सही मैत्री मिलान से ही संभव होता है ।मिलन सभी जीवों के होते हैं परन्तु जीने का ढंग सबके अलग -अलग होता है ।मानव जीवन सर्वोत्तम मानते हैं सभी इसलिए देवता भी लालायित रहते हैं ।हम कैसे जियें ये न सोचकर हमसे लोग ,समाज ,परिवार ,संताने क्या सीखें ये सोच रखने वाले कुंडली का मिलान कराते हैं ---।
      ----------मैत्री कूट सात प्रकार के होते हैं ।-----और इनके गुण 5 मानते हैं ।
                      {1}-वर -कन्या की राशियों में स्वामी ग्रह एक होने पर तथा परस्पर मैत्री सम्बन्ध होने पर -5 गुण होते हैं ।
            {2}-सम मित्रता होने पर -4 गुण मानते हैं ।
            {3}-दोनों में समता होने पर -3गुण मानते हैं ।
                {4}-मित्र से शत्रुता होने पर -1 गुण होता है ।
             {5}-अगर सम शत्रुता हो तो आधा गुण एवं राशियों में परस्पर शत्रुता होने पर गुण नहीं होता है ।
----भाव --मित्रादि होने पर भी यदि नीच या निर्बल हो तो एक गुण कम ही मानते हैं --किन्तु ये सभी जगह मान्य नहीं है ।
   नोट -----कभी -कभी लोग कुंडली मिलान को उपहास समझकर मिलान नहीं कराते हैं किन्तु जब जीवन दुखी हो जाता है तो पुनः ज्योतिष की शरण में आते हैं ------संसार में ज्योतिष भेद -भाव रहित अनमोल गुरुजनों की देन हैं --जो केवल भाव ,श्रद्धा से ही समझ में आ सकती है --अतः  वैवाहिक जीवन सुखी हो-ज्योतिष की भी सुनें ?
-----निवेदक -पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री "-{मेरठ -भारत }

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

"ग्रहण के समय "सूतक" का विचार जानते हैं ?"

"ग्रहण के समय "सूतक" का विचार जानते हैं ?"
--सूर्य ग्रहण में -12 घंटे पहले सूतक लगता है तथा "चन्द्र ग्रहण "में 09 घंटे पहले सूतक लगता है । ग्रहण के समय धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूतक काल में भोजन ,शयन इत्यादि कर्म वर्जित हो जाते हैं ।इसका भाव -यह है कि ग्रहण के समय सौर मंडल में बहुत प्रदूषण होता है । इससे जड़ -चेतन सब प्रभावित होते हैं । समस्त प्राणी {जीव }भयभीत रहते हैं । प्राकृतिक दृश्य भी बदले -बदले से रहते हैं । बहुत से ज्योति-कणों प्रति सेकेण्ड सैकड़ों मील की गति से चलते हैं । ग्रहण के कारण रुक जाते हैं तथा कणों की छाया की तरह प्रतीत होने लगते हैं । भूमि पर इन कणों की छाया सी बन जाती है एवं थोड़ी ही देर में दिखने लगती है । ग्रहण के समय उन कणों का जीव के मस्तिष्क के कोमल तंतुओं पर जो प्रभाव पड़ता है --उससे प्राणी के आचार -विचार तथा स्वभाव में परिवर्तन आ जाता है । इस भय से भोजन -शयन पर प्रतिबन्ध होता है तथा ग्रहण के पहले एवं बाद में नहाने की व्यवस्था है । इस बात से लगता है हमारे ऋषियों ने कोई भी नियम कपोल -कल्पित नहीं बनाये हैं ।     
   --प्रेषकः ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत } निःशुल्क ज्योतिष जानकारी एकबार कोइ भी मित्र रात्रि -7 .3 0 से 9 .3 0 तक  एकबार प्राप्त कर सकते हैं । दुबारा ज्योतिष जानकारी के लिये सदस्य बनना होता है जिसकी प्रति व्यक्ति आजीवन शुल्क -1100 सौ रूपये हैं । खाता संख्या -20005973259---स्टेट बैंक ब्रह्मपुरी मेरठ ,नाम -कन्हैयालाल शास्त्री -आई एफ एस सी कोड --एस बी आई एन 0002321----सहायता हेतु सूत्र ---91989 7701636----

सोमवार, 15 अप्रैल 2013

हमारे "नक्षत्र" और हमारे "पेड़ "?

हमारे "नक्षत्र" और हमारे "पेड़ "?

--ग्रहों की शांति हेतु पूजा -पाठ ,यग्य हवं में विशेष प्रजाति के पल्लव {टहनी } पुष्प ,फूल ,फल ,काष्ट{समिधा }की आवश्यकता पड़ती है ,जो कि नवग्रह एवं नक्षत्रों से सम्बंधित पौधे ही दे सकते हैं ।पुराणों के अनुसार जिस नक्षत्र में गृह विद्यमान हो उस समय उस नक्षत्र सम्बन्धी पौधे का यत्नपूर्वक संरक्षण तथा पूजन से ग्रह की शांति होती है तथा जातक को मनोवांछित फल मिलता है ।।.



क्यों न हमलोग --अपनी सुख समृधि के लिए - अपने -अपने नक्षत्रों के अनुसार पेड़ ,बगीचा ,बाटिका लगायें?

नक्षत्र ---------------------पेड़ {१५}-स्वाती ------अर्जुन.

{१}-अश्विनी ------कुचिला {१६}-विशाखा ---कटाई.

{2}-भरणी---------आंवला {१७}-अनुराधा ---मौलश्री.

{३}-कृतिका ----गूलर {१८}-ज्येष्ठा-----चीड़.

{४}-रोहिणी ---जामुन [१९}-मूल ----साल.

{५}-मृगशिरा ---खैर {२०}-पूर्वाषाढा---जलवेतस.

[६}-आर्द्रा--------शीशम {२१}-उत्तराषाढा ----कटहल.

{७}-पुनर्वसु ------बांस {२२}-अभिजित{ xxx}.

{८}-पुष्य --------पीपल {23}-श्रवण ---मदार.

{९}-आश्लेषा ---नागकेसर {२४}-शतभिषा ---कदम्ब.

{१०}-मघा-----बरगद {२५}-पूर्वा भाद्रपद ----आम.

{११}-पुर्वा फाल्गुनी-----ढ़ाक {२६}-उत्तरा भाद्रपद ----नीम.

{१२}-उत्तरी फाल्गुनी ----पाकड़ {२७}--रेवती -----महुआ.

{१३}-हस्त ----रीठा

{14}-चित्रा------वेळ

---नोट --उक्त नक्षत्रों के पौधे हैं जो आप --ग्रह जनित दोषों के निवारणार्थ सरलता से पौधे {रोप }लगा सकते हैं । ग्रह ,नक्षत्रों के पौधों का उल्लेख ,पौराणिक ज्योतिष ,आयुर्वेदिक ,तांत्रिक व् एनी ग्रंथों में मिलता है --इनमें से प्रमुख ग्रन्थ हैं --{१}-नारद पुराण{२}-ज्योतिष ग्रन्थ हैं --नारद संहिता {३}-आयुवेदिक ग्रन्थ --राज निघंट वृहत धू श्रुत नारायणी संहिता {४}-तांत्रिक ग्रन्थ -शारदा तिलक ,मन्त्रमहार्णव ,श्री विद्यार्नव तंत्र आदि {५} अन्य ग्रंथ---आनादाश्रम प्रकाशन ,वनस्पति ---अध्यात्म ,नक्षत्र वृक्ष आदि ।।.

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"आपके नक्षत्र "वाटिकाओं से भी प्रसन्न होते हैं ?"

       "आपके नक्षत्र "वाटिकाओं से भी प्रसन्न होते हैं ?"

मित्रप्रवर -राम राम ,नमस्कार |

         हमारे ऋषि -मुनियों ने प्रत्येक ग्रह एवं नक्षत्र से सम्बंधित पौधों के बारे में जानकारी की थी ,तथा नवग्रह एवं नक्षत्र वाटिकाएं की जानकारी कुछ ग्रंथों के द्वरा उपलभध भी करायी थी

      {१}-नारद पुराण{पौराणिक ग्रन्थ }{२}-नारद संहिता {ज्योतिष ग्रन्थ }{३}-राज निघंटु व्रेहतधुश्रुत{आयुर्वेदिक ग्रन्थ }{४}-शारदादितिलक {तांत्रिक ग्रन्थ -मन्त्र महार्णव ,श्रीविद्यार्नव,तंत्र आदि  {६}अन्य ग्रन्थ-आन्दास्रम,प्रकाशन ,वनस्पति ,अध्यात्म नक्षत्र -वृक्ष  इत्यादि ||

            इन तमाम ग्रंथों के मध्यम से जाना जा सकता है -नक्षत्र वाटिकाओं से कितना लाभ हो सकता है | सदैव से यह भी मान्यता रही है -कि ग्रह नक्षत्रों के कुप्रभावों से वृक्ष एवं वनस्पतियाँ समाप्त या कम जरुर कर सकती हैं | भारतीय मान्यता में -सूर्य मंडल  के समस्त सदस्यों व उपसद्स्यों {जिसमें सूर्य एवं चंद्रमा भी शामिल हैं }को ग्रह कहा गया है |ये{ग्रह } धरती के करीब होने से इनकी स्थिति नित्य बदलती रहती है | नक्षत्र -धरती से अत्यधिक दूर होने के कारण परिवर्तन का अनुभव नहीं हो पाता है , अतः नक्षत्र को स्थिर कहे गए हैं | ज्योतिष विद ने -चंद्रमा के रास्ते को २७ भागों में बाटें हैं| प्रत्येक -२७ वें  भाग में पड़ने वाले तारामंडल के बीच कुछ विशेष तारों को पहचान कर उन्हें एक नया नाम दिया -जिन्हें हमलोग नक्षत्रों के नाम से जानते हैं |-इस प्रकार से -नवग्रहों एवं २७ नक्षत्रों की ज्योतिष में पहचान की गयी है ||

    अस्तु -जिस प्रकार से शारीरिक कष्ट को दूर करने कुछ विशेष प्राप्ति के लिए हमलोग जिस प्रकार से रत्न धारण करते हैं |उसी प्रकार से -ग्रहों एवं नक्षत्रों से सम्बंधित पौधों को उगाने से भी लोगों को मनोवांछित फल मिल सकता है | -महर्षि चरक के अनुसार धर्म ,अर्थ ,कम ,मोक्ष  को प्राप्त करने हेतु -आरोग्य रहना आवश्यक है |स्वस्थ शरीर एवं दीर्घ जीवन प्राप्त करने के लिए  भोजन ,शुद्ध  ,वायु ,जल ,तथा प्रदूषण रहित पर्यावरण आवश्यक है |  बाबा तुलसी दास जी के अनुसार -

                      "गगन समीर अनल जल धरनी |

                        इनकी नाथ सहज जड़ करनी ||

हमारे जीवन की भव्यता में -वनस्पतियों की अहम् भूमिका सदैव रही है |लगभग सभी कालों में -वन वाग ,उपवन ,वाटिका ,सर कूप ,वासी सोहई  की प्रथा रही है |आज भी हरियाली तथा शुद्ध पर्यावरण के प्रति हम जागरूक हैं ||

       {१}-सूर्य की प्रसन्नता के लिए -मदार का वृक्ष लगायें |{२}-सोम {चंद्रमा }के लिए पलाश का वृषा लगायें {३}मंगल -के लिए खैर का वृक्ष {४}बुध के लिए  -अपामार्ग {लटजीरा }का वृक्ष लगायें {५}गुरु के लिए -पीपल का वरिश लगायें {६} शुक्र के लिए गूलर का वृक्ष {७}शनि के लिए -शमी का वृक्ष {८}राहू के लिए-दूब लगायें {९}केतु के लिए -कुशा लगायें ||

        कम हम २७ नक्षत्रों से सम्बंधित पौधों से लाभ का जिक्र करेंगें ||


भवदीय निवेदक -ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ -}   संपर्कसूत्र-०९८९७७०१६३६,09358885616

"पति -पतनी में सामंजस्ता अर्थात "गण मिलान"?----

"पति -पतनी में सामंजस्ता अर्थात "गण मिलान"?--------वैवाहिक जीवन में लोग सूझ -बूझ की परम आवश्यकता होती है --किसी की पतनी अच्छी होती है तो किसी के पति अच्छे होते हैं -किन्तु दोनें अच्छे हों तो सामंजस्ता निरंतर बनी रहती है ।कुछ लोग वैवाहिक जीवन अपने लिए नहीं औरों के लिए जीते हैं --ये स्थिति उत्पन्न न हो इसलिए गण का विचार करते हैं कुंडली मिलान में -----।
    ---------रक्षो गणः पुमान स्याचेत्कान्या भवन्ति मानवी ।
                 केपिछान्ति तदोद्वाहम व्यस्तम कोपोह नेछति ।।
--अर्थात -मुहूर्त कल्पद्रुम ग्रन्थ में कहा है -कि कृतिका ,रोहिणी ,स्वाति ,मघा ,उत्तराफाल्गुनी ,पूर्वाषाढ़ा ,उत्तरा षाढा ,इन नक्षत्रों में जन्म होने पर गण दोष मान्य नहीं होता है ।
                 -------कृतिका रोहिणी स्वामी मघा चोत्त्राफल्गुनी ।
                            पूर्वा षाढेत्तराषाढे न क्वचिद गुण दोषः ।।
भाव -----वर- कन्या के राशि स्वामियों में मैत्री हो अथवा नवांश के स्वामियों में मैत्री हो तो गण आदि दुष्ट रहने पर भी विवाह पुत्र -पौत्र को बढ़ाने वाला सुखद प्रिय होता है ।
     ------नोट -अश्विनी आदि सभी नक्षत्रों के गुण ,कर्म ,स्वभाव ,परिक्षण परित्वेना --1-देवगण -2-नर गण -3-राक्षस गण -तीन विभागों में बांटा गया है ।
    {1}-वर -कन्या दोनों एक गण के हों तो उत्तम सामंजस्ता  रहती है ।
    {2}-देव -नर हों तो मध्यम सामंजस्ता रहती है ।
    {3}-देव -राक्षस हो तो -लडाई -झगडे के कारण सामंजस्ता नहीं रहती है ।
-नोट -शारंगीय में कहा गया है -कि वर -राक्षस गण का और कन्या मनुष्य गण की हो तो विवाह उचित और सामंजस्ता रहती है ।इसके विपरीत वर मनुष्य गण का एवं कन्या राक्षस गण की हो तो विवाह उचित नहीं रहता अर्थात सामंजस्ता नहीं रहती है ।।
------निवेदक पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री "{मेरठ -भारत }

     ज्योतिष परामर्श हेतु-09897701636-09358885616------!

"नाड़ी दोष अर्थात वियोग और संताप "?

"नाड़ी दोष अर्थात वियोग और संताप "?---वैवाहिक जीवन -लोभ ,अर्थ ,काम के बाद मोक्ष प्राप्ति से ही सही माना जाता है ।और इसके लिए पत्ति -पतनी का सहयोग अतिम घडी तक बना रहना चाहिए । ये संभव नाड़ी का मिलान सही होने से ही होता है ।

          ---------कुंडली मिलान का आठवाँ विचार नाड़ी विचार को जानते हैं ।

              {1}-आदि नाडी -अश्विनी ,आर्द्रा ,पुनर्वसु ,उत्तर फाल्गुनी ,हस्त ,ज्येष्ठा ,मूल ,शतभिषा और पूर्व भाद्रपद -ये 9-नक्षत्र को आदि नाडी कहते हैं ।

                {2}-भरणी ,मृगशिरा ,पुष्य ,पूर्व फाल्गुनी ,चित्रा ,अनुराधा ,पूर्वा षाधा ,धनिष्ठा और उत्तर भाद्रपद को मध्य नाडी कहते हैं ।

                 {3}-कृतिका ,रोहिणी ,शलेषा ,मघा ,स्वाति ,विशाखा ,उत्तर षाढा श्रवण और रेवती को अन्त्य नाड़ी कहते हैं ।

प्रभाव ------किसी भी एक नाड़ी में वर -कन्या दोनों के नक्षत्र होने पर दाम्पत्य सुख अत्यंत भयावह हो जाता है ।दोनों में से किसी एक को शारीरिक अत्यंत पीड़ा होती है और वियोग हो जाता है ।

                 "निधनं मध्यम नाड्याम दाम्पत्योर्नैव पार्श्व योनाड्योह "

-----अर्थात -ज्योतिष प्रकाश -में इस वाक्य में मध्य नाडी होने पर दोनों दोनों {पति -पतनी }को बहुत कष्ट झेलने पड़ते हैं ।-तीनों नाड़ियों में दोष होने पर दाम्पत्य जीवन अडिग नहीं रहता है ।

              "नाडी दोशोस्ति विप्राणां वर्ण दोषोस्ती भूभुजाम ।

               वैश्यानां गण दोषः स्यात शुद्राणाम योनिदूश्नाम ।।

भाव -कुछ आचार्यों ने कहा -नाडी दोष केवल ब्राह्मणों को लगता है ।और वर्ण दोष क्षत्रियों को ही लगता है ।एवं गण दोष वैश्यों को ही लगता है तथा -योनी दोष दासों को ही लगता है ।

  नोट -जब जीवन की घडी लम्बी न हो ,सुखद न हो ,मोक्ष प्राप्ति तक न पंहुंचे -अर्थात पति -पतनी साथ -साथ अंतिम पड़ाव तक न पँहुचे तो वैवाहिक सुख अधूरा रहता है इसलिए कुंडली मिलान नितांत आवश्यक है ।जिस प्रकार नरकों के वर्णन सुनकर नरकों में नहीं जाना चाहते हैं इसी प्रकार वैवाहिक जीवन सर्वगुण संपन्न हो कुंडली मिलान अनिवार्य समझें ।

    प्रेषकः -पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री "मेरठ उत्तर प्रदेश -भारत ।

          ज्योतिष सहायता सूत्र -9897701636-9358885616------।।

वैवाहिक जीवन की आयु अर्थात "भकूटदोष"?

  वैवाहिक जीवन की आयु अर्थात "भकूटदोष"? 
-------दाम्पत्य जीवन सरस हो ,प्रेम की अविरल धारा वहती हो अर्थात सभी सुख हो किन्तु अवधि {आयु }लम्बी न हो तो फिर पुत्र ,पौत्र के बिना वैवाहिक जीवन अधूरा रहता है । ये वैवाहिक जीवन दीर्घायु हो इसलिए "भकूट दोष अर्थात राशि मिलान करते  हैं ।
         "मृत्युह षडाष्ट के ज्ञेयो पत्य्हा निर्नवात्माजे ।
          द्विर्द्वादशो दरिद्रत्व्म द्वयोर्न्यत्र सौख्यक्रित ।।
-----अर्थात -वर -कन्या की राशियों का स्वामी ग्रह एक ही हो ,अथवा दोनों राशियों में मैत्री हो तथा नाड़ी नक्षत्र शुद्ध रहे तो दुष्ट "भकूट दोष "में भी विवाह शुभ होता है ।
    --------किन्तु उक्त शलोक में --{1}-वर की राशि से कन्या की राशि तक और कन्या की राशि से वर की राशि तक गिनने पर -6/8-संख्या हो तो दोनों {पति -पतनी }को चोट पहुँचती है ।
         {2}-अगर ये संख्या -9/5-हो तो संतानों को माता -पिता से या संतान से माता -पिता को हानी सहनी पड़ती है ।
{3}-यदि गिनती से शेष संख्या -2/12-हो तो वैवाहिक जीवन में गरीबी अर्थात धन की दुखद स्थिति रहती है ।
 {4}-अशुभ केंद्र योग -4/10-को माना गया है । ये चार प्रकार के सम्बन्ध --षडाष्टक {6/8}-नव -पंचम -{9/5}-द्वि द्वादश -{2/12}--और केंद्र योग ये ज्योतिष के कई ग्रंथों में अशुभ माने गये है ।
   नोट ---ज्योतिष का भाव डराने का  नहीं अपितु आपका वैवाहिक जीवन सुखद हो इसलिए ज्योतिष की सलाह अवश्य लेनी चाहिये ।अगर प्रेम या पसंद हो तो विवाह के समय उन नामों से न करें जो दोष कारक हों ?
    प्रेषकः -"झा शास्त्री "{मेरठ -भारत }

         सहायता सूत्र -9897701636-9358885616-------!!

गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

"अंग्रेजी का "सन"भी संवत्सर {संवत }का ही प्रतीक है ?"

 ---ज्योतिषी विद्वानों के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी को कृतयुग का आरम्भ हुआ है । वैशाख शुक्ल तृतीया को त्रेतायुग की प्रसूति हुई है । माघ कृष्ण अमावस्या को द्वापर का सूत्रपात तथा भाद्र कृष्ण त्रयोदशी को कलियुग की उत्पत्ति हुई है । शब्द मीमांसाशास्त्र के प्रणेता एवं वेत्ताओं ने "संवत्सर "शब्द को भी युग शब्द का ही पर्यायवाची शब्द स्वीकार किया है ।
    -------संवत्सर के विषय में एक प्रमुख बात यह भी है -कि उत्तर भारत में प्रायः चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से विक्रम संवत्सर का प्रारंभ मानते हैं ,किन्तु गुजरात एवं महाराष्ट्र आदि दक्षिण प्रान्तों में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से विक्रम संवत्सर का प्रारंभ मानते हैं ।
       -----तैत्तरीय ब्राह्मण में लिखा है कि अग्नि =संवत्सर है । एवं -आदित्य {सूर्य }=परिवत्सर हैं । तथा -चंद्रमा =इदावत्सर और वायु =अनुवत्सर है । आधुनिक विख्यात संवत शब्द संवत्सर शब्द का अपभ्रंश है । सम +वस्ति +ऋतवः भाव -अच्छी ऋतु जिसमें है ,उस काल गणना के प्रमाण को संवत्सर कहते हैं । इसलिये जन्म कुंडली की शुरू लेखन में संवत्सर का ही निर्देश होता है । एक संवत्सर एक वर्ष का माना जाता है ।ज्योतिष के आचार्य गुरु स्थित राशि भोग काल को संवत्सर मानते हैं क्योंकि गुरु भी एक राशि में एक वर्ष निवास करते हैं । संवत्सर -कुल  साठ -{६० }हैं । समस्त संवत्सरों का फलाफल -उन्नति +अवनति सूर्य की सशक्त गति और काल वैभव पर आधारित है ।
         ----संसार का कोई भी देश ऐसा नहीं है जिसकी धरती पर इस दिन नायक सूर्य ने अपनी रोशनी न दी हो । एवं उस देश के निवासियों ने लाभ नहीं लिया हो तथा इनकी अर्चना नहीं की हो !लाभ देने वाला यह सार्वभौमिक नक्षत्र-{सूर्य }प्रत्येक स्थान पर श्रदा एवं निष्ठा के साथ पूजा जाता है ।
       ---अर्थात -संसार का ऐसा कोई महापुरुष नहीं है ,जो इसे महत्त्व न देता हो ,इसी के उदय से भारतवर्ष में संवत्सर परिपाटी का प्रचलन शुरू हुआ । अंग्रेजी सन भी संवत्सर का ही प्रतिक है ।
         निवेदक -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत }
         नव संवत्सर पर हम सभी ज्योतिष प्रेमियों का अभिनन्दन करते हैं ---सभी के लिये नव वर्ष मंगलमय हो !  {वन्दे मातरम }  

बुधवार, 10 अप्रैल 2013

"वर्ष {संवत्सर }कहते किसको हैं ?"


"रितुभिहि संवत्सरः शक्प्नोती स्थातुम "
अर्थात -जिसमें ऋतुएं वास करती हैं वह "वर्ष" या "संवत्सर" कहलाता है ||
वर्ष-को दो भागों में विभाजित किया गया है -
{ १}-सौर वर्ष {२}-चन्द्र वर्ष
{१}-सौर वर्ष - पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने के लिए ३६५ दिन १५ घंटे और११ मिनट का जो समय लगता है, उसे "सौरवर्ष" कहते हैं ||
{२}-चन्द्र वर्ष-चंद्रमा को पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए- ३५४ दिन का जो समय लगता है -उसे चन्द्र कहते हैं ||
प्रेषकः -"झा शास्त्री "
ज्योतिष परामर्श -रात्रि ८ से९ {09897701636 ,9358885616

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

"अपने विवेक का सतत उपयोग करें ?"

-{१}-मनः  एवं मनुष्याणाम कारणं बंध मोक्षयोह ?
------भाव -मनुष्यों के बंधन और मोक्ष का कारण  उनका मन ही है ।अतः विवेक रूपी मन का प्रयोग से मोक्ष मिल सकता है । अविवेकी होकर बन्धनों के पाश में जकड़े ही रहते हैं ।।
{२} -नासमीक्ष्य परं स्थानं पुर्वमायतनं त्यजेत ?-
   ----भाव -दूसरा स्थान देखे बिना पहला स्थान नहीं छोड़ना चाहिए ।अर्थात --हमलोग किसी भी प्रलोभन में बहुत जल्दी उलझ जाते हैं --अतः विवेक से पथ का चयन करें ।
{३}-लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति ?
----भाव -आँखों से रहित व्यक्ति को दर्पण क्या लाभ पहुंचा सकता है ।-अर्थात किसी भी बात को विवेक से समझे बिना प्रत्युत्तर न दें ।।
-----{४}-यांचा मोघा वरमाधिगुने नाधमे लाभ्धकामा ।
-----भाव -सज्जन से निष्फल याचना भी अच्छी,किन्तु नीच से सफल याचना भी अच्छी नहीं --अर्थात -हमें मागना अच्छे लोगों से चाहिए चाहे मिले या न मिले ,किन्तु बुरे लोगों से मांगने से कुछ मिल भी जाये तो प्रसन्न नहीं होना चाहिए ।।
-----प्रियेषु सौभाग्य फला ही चारुता ?
---भाव --सुदरता प्रिय को प्रसन्न करने पर ही सार्थक है । अर्थात --- सुदरता की उपमा केवल साहित्य में प्रियतमा के लिए है ,यद्यपि सुन्दरता सबको प्रिय है ,परन्तु किसी भी सुदरता से प्रियतमा प्रसन्न हो जाये  -तो आपकी सुन्दरता सार्थक है ।।
----आपदि स्फुरति प्रज्ञा यस्य धीरः स एव  ही ?
----भाव --आपत्ति के समय जिसकी बुद्धि स्फुरित होती है ,वही धैर्यवान है----अर्थात आपत्ति के समय जो विवेक से काम लेते हैं,बिचलित नहीं होते हैं ,वही व्यक्ति विवेकवान होते हैं ।।
भवदीय -पंडित कन्हैयालाल झा-  किशनपुरी धर्मशाला देहली गेट मेरठ {उत्तर प्रदेश }
     ज्योतिष सेवा रात्रि ८ से९ सभी मित्रों के लिए उपलब्ध रहती है । सूत्र -0989770163,09358885616 

रविवार, 7 अप्रैल 2013

"परीक्षा में होंगें सफल ,दुष्ट ग्रहों के दुष्ट प्रभाव को यूँ करें निष्फल ?"

"परीक्षा में होंगें सफल ,दुष्ट ग्रहों के दुष्ट प्रभाव को यूँ करें निष्फल ?"

अत्यधिक मेहनत, दिन रातों की कोशिश ,उत्तम शिक्षा फिर भी सफलता अनुकूल क्यों नहीं मिलती -क्योंकि -भाग्यम फलती सर्वत्र ,न विद्या न च पौरुषम --पूर्व जन्म के दोष के कारण अत्यधिक कोशिश के बाद भी हम    अपने जीवन में निरास हो जाते हैं । चाहे उसे ग्रहों के दुष्प्रभाव कहें या भाग्य ?---२०१२ में शिक्षा जगत के लिए बहुत ही उत्तम समय चल रहा है ---शुक्रस्य पञ्चवारास्यु यात्रा मासे निरंतरम । प्रजा वृद्धि सुभिक्षम च सुखं तत्र प्रवर्तते ----अर्थात पृथ्वी पर चारो प्रकार के जीवों को वृद्धि होगी ,सुख समृधि बढ़ेगी ।।-अगर आप परीक्षा देने जा रहे हैं -तो अपनी -अपनी राशि  के अनुसार कुछ यूँ प्रयोग करके देखें  असंभव सा प्रश्न भी संभव हो जायेगा --।
{१}-मेष -चने की दाल एवं गुड गाय को खिलाकर जाएँ - पीला रुमाल ,या पीला कलम का प्रयोग करने से स्मरण शक्ति तेज होगी ।
{२}-वृष-कुत्ते को दूध पिलाकर परीक्षा देने जाएँ-अपनी जेब में रुद्राक्ष रखें या काली कलम का प्रयोग करें -सफलता जरुर मिलेगी ।
{३}-मिथुन -मछली के दर्शन या  मंदिर का अवलोकन करें ,हरी कलम से लिखें -एक सिक्का अपने ऊपर उतारकर पेड़ की जड़ में रखने से सफलता जरुर मिलेगी ।
{४}-कर्क - दूध का दान ,शहद का पान करके परीक्षा देने जाएँ -सफेद कलम या मोती   की माला धारण करने से सफलता जरुर मिलेगी ।      
{5}-सिंह - गाय को गुड खिलाकर -या बंदरों को फल खिलाकर परीक्षा देने जाएँ -चित्रित लेखनी का प्रयोग करें ,मन को स्थिर रखें स्मरण न आने पर दोनों हाथों को क्षण भर के लिए नेत्रों पर रखें याद आ जाएगी एवं सफलता जरुर मिलेगी ।{६}कन्या - गाय को चारा या हरे फल भागवान को अर्पण करके परीक्षा देने जाएँ -गुरुजनों के चरण स्पर्श ,दही पान करके यात्रा करें सफलता जरुर मिलेगी ।
{७}-तुला -दर्पण का करें अवलोकन ,गणपति जी का स्मरण -काली लेखनी का प्रयोग से सफलता जरुर मिलेगी ।{८}वृश्चिक -झाड़ू का दान ,मखानो  के पान,लाल वस्त्र  के उपयोग  से सफलता  जरुर मिलेगी  ।
{9}-धनु   - केला  करें मंदिर में अर्पण एवं  पिली वस्तु -{कलम या रुमाल }करें धारण सफलता जरुर मिलेगी ।{10}-मकर - काली लेखनी ,काला रुमाल शनि देव को  कराएँ स्पर्श एवं रखें अपने पास बदले में दक्षिणा चढ़ाकर जाएँ परीक्षा  देने जाएँ सफलता जरुर मिलेगी ।
{11}-कुम्भ -नारियल शनिदेव  को करें अर्पण ,us दिन काली वस्तुओं  का करें समर्पण -सफलता जरुर मिलेगी ।
{12}-पीला चन्दन लगायें  ,पीली लेखनी एवं पीला रुमाल अपने पास रखें -भागवान विष्णु  को पीली माला अर्पण करके  परीक्षा देने जाएँ सफलता जरुर मिलेगी ।
--भवदीय पंडित के०एल० झा शास्त्री  {मेरठ }ज्योतिष परामर्श  -09897701636,09358885616-रात्रि  ८ से 9 सभी  मित्रों  के लिए ?

शनिवार, 6 अप्रैल 2013

"कैरियर निर्माण हेतु -कुंडली का निरिक्षण अवश्य करें ?

"कैरियर निर्माण हेतु -कुंडली का निरिक्षण अवश्य करें ?"प्राचीन कल में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति होता था |विद्यार्थी किसी योग्य विद्वान के निर्देशन में विभिन्न प्रकार की शिक्षा ग्रहण करते थे |इसके  अतिरिक्त उसे शस्त्र सञ्चालन एवं विभिन्न कलाओं का प्रशिक्षण भी दिया जाता था |किन्तु वर्तमान समय में यह सभी प्रशिक्षण गौण हो गए हैं |शिक्षा की महत्ता बढ़ने व् प्रतिस्पर्धात्मक युग में सजग रहते हुए बालक के बोलने व् समझने लगते ही माता -पिता शिक्षा के बारे में चिंतित हो जाते हैं |कुछ वर्षों बाद सबसे बड़ी समस्या यही होती है कि कौन सा विषय पढ़ायें ,जिससे उनके बच्चे का भविष्य सुखमय हो ?
----{१}-सर्वप्रथम जातक के बचपन से ही उसकी कुंडली विषय की पढाई व् कैरियर चयन में सहायक होती है |
---{२}जातक की कुंडली से तय करना चाहिए कि वह नौकरी करेगा या व्यवसाय |
---{३}-जातक कि २० से ४० वर्ष की उम्र के बिच की ग्रहदशा का सूक्षम अध्ययन कर यह देखना चाहिए कि दशा किस प्रकार के कार्यक्षेत्र का संकेत दे रही है |
----{४}-आगामी गोचर या दशा कार्य क्षेत्र में तरक्की का संकेत दे रही है या नहीं ? इसका भी परीक्षण कर लेना चाहिए |
कुंडली में शिक्षा का योग -----जन्म कुंडली का नवम भाव धर्म त्रिकोण स्थान है ,जिसके स्वामी देव गुरु वृहस्पति हैं | यह भाव शिक्षा में महत्वाकांक्षा व् उच्च शिक्षा तथा उच्च शिक्षा किस स्टार कि होगी इसको दर्शाती है | यदि इसका सम्बन्ध पंचम से हो जाये तो अच्छी शिक्षा मिलती है ||
----शिक्षा का स्तर------जन्मकुंडली  का पंचम भाव बुद्धि ,ज्ञान ,कल्पना ,अतीन्द्रिय ज्ञान,रचनात्मक कार्य ,याददास्त व् पूर्वजन्म के संचित कर्म को दर्शाता है | यह शिक्षा के संकाय का स्तर तय करता है ||
-----शिक्षा किस प्रकार की होगी --------जन्मकुंडली का चतुर्थभाव मन का भाव है |यह इस बात का निर्धारण करता है कि आपकी मानसिक योग्यता किस प्रकार की शिक्षा में होगी |जब भी चतुर्थ भाव का स्वामी छठे ,आठवें या बारहवें भाव में गया हो या नीच राशि,अस्त राशि ,शत्रु राशि में बैठा हो व् करक ग्रह {चंद्रमा } पीड़ित हो तो शिक्षा में मन नहीं लगता है ||
-----शिक्षा का उपयोग -----जन्मकुंडली का द्वितीय भाव -वाणी ,धन ,संचय ,व्यक्ति की मानसिक स्थिति को व्यक्त करता है तथा यह दर्शाता है कि शिक्षा आपने ग्रहण कि है वह आपके लिए उपयोगी है या नहीं |यदि इस भाव पर पाप ग्रह का प्रभाव हो तो जातक शिक्षा का उपयोग नहीं करता है |
  जातक को बचपन से किस विषय की पढाई करवानी चाहिए ,इस हेतु हम मूलतः निम्न चार पाठ्यक्रम{ विषय } को ले सकते हैं --गणित ,जिव विज्ञानं ,कला और वाणिज्य -----
   {१}-गणित ---गणित के करक ग्रह बुध का सम्बन्ध यदि जातक के लग्न ,लग्नेश या लग्न नक्षत्र से होता है तो वह गणित में सफल होता है ||
 {२}-शनि एवं मंगल किसी भी प्रकार से सम्बन्ध बनायें तो जातक -मशीनरी कार्य में दशा होता है ||
---जीव विज्ञानं -सूर्य का जल राशिस्थ होना ,छठे एवं दशम भाव /भावेश के बीच सम्बन्ध ,सूर्य एवं मंगल का सम्बन्ध आदि चिकित्सा क्षेत्र में पढाई के करक होते हैं
---कला ------पंचम /पंचमेश एवं करक गुरु ग्रह का पीड़ित होना कला के क्षेत्र में पढाई का करक होता है | इन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पढाई प[उरी करवाने में सक्षम होती है ||
--वाणिज्य --लग्न /लग्नेश का सम्बन्ध बुध के साथ -साथ गुरु से भी हो तो जातक वाणिज्य की पढाई सफलता पूर्वक करता है ||
  आइये जानते हैं अच्छी शिक्षा के योग -----
{१}-द्वितीयेश या वृहस्पति केंद्र या त्रिकोण में हों |
{२}-पंचम भाव में बुध की स्थिति अथवा दृष्टि या बृहस्पति और शुक्र की युति हो |
{३}-पंचमेश की पंचम भाव में वृहस्पति या शुक्र के साथ युति हो ?
{४}-बृहस्पति ,शुक्र और बुध में से कोई भी केंद्र या त्रिकोण में हो ?
---नोट - शिक्षा की सलाह अपने -अपने पुरोहित जी आचार्यजी से लें और अपनी -अपनी संतानों को शिक्षा की सही राह दिखाएं ||
   भवदीय निवेदक -पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री {मेरठ -उत्तर प्रदेश }
  निःशुल्क ज्योतिष सेवा एकबार ही सभी मित्रों को संपर्क सूत्र द्वारा ही मिल पायेगी -रात्रि -8  से 9 .३० में =09897701636 ,09358885616   

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

"अपनी -अपनी जन्म तिथियों के स्वाभाव और प्रभाव जानें ?"

--ज्योतिष के दो प्रारूप हैं -गणित और फलित |-गणित को गणना के माध्यम से  ही जाना जा सकता है ,किन्तु समय के आभाव के कारण कुछ जातक - आपकी कुंडली की जानकारी से वंचित रह जाते हैं | उन जातकों के हित के लिए और जिन जातकों को अपनी कुंडली की जानकारी उपलब्ध रहती है उन सभी के लिए भी--अपनी -अपनी जन्म तिथियों की जानकारी के द्वारा -अपने -अपने  कष्टको दूर कर सकते हैं |
----वैदिक प्रक्रिया में सात्विक  बलिदानों के विधान बताये गए हैं-|
जन्म चाहे शुक्ल पक्ष में हो या कृष्ण पक्ष में तिथिओं का फलित यथावत होता है |
{१}-प्रतिपदा तिथि में जन्म हुआ हो तो -- स्वामी अग्निदेव हैं -कष्ट तिथि आपकी द्वादशी होगी --शक्कर एवं घी की आहुति देने से {हवन में }लाभ होगा |-दान आप -घी एवं अन्न का करें |
{२}-द्वितीया तिथि में जन्म हुआ हो तो --आपके स्वामी -ब्रह्मा हैं,कष्दायक तिथि पंचमी रहेगी ,पायस{खीर }की आहुति देने से लाभ होगा,---भोजन का दान करने से सुख समृद्धि आएगी  |
{३}-तृतीया तिथि में जन्म हुआ हो तो - इष्टदेव -देवी हैं ,सप्तमी तिथि आपके लिए हानिकारक रहेगी ,घी और अन्न की आहुति से लाभ होगा ,-दान आप रक्तवस्त्र का करें -अत्यधिक प्रसन्नता मिलेगी ||
{४}-चतुर्थी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो --इष्टदेव आपके गणेशजी हैं ,पूर्णिमा तिथि आपके लिए अहितकर रहेगी ,मिष्टान की आहुति देने से-प्रसन्नता मिलेगी ,रत्न मूंगा का दान से लक्ष्मी की प्राप्ति होगी ||
{५}-पंचमी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो -इष्टदेव आपके नागदेव हैं ,षष्ठी तिथि आपके लिए अहितकर रहेगी ,खीर की आहुति से लाभ होगा ,दूध का दान से प्रसन्नता मिलेगी ||
{६}-षष्ठी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो -इष्टदेव आपके कार्तिकजी हैं ,द्वादशी तिथि कष्दायक रहेगी आपके लिए ,मोदक की आहुति से लाभ होगा ,चित्रित वस्त्र का दान से उन्नति होगी आपकी ||
{७}-सप्तमी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो -इष्टदेव आपके सूर्यदेव हैं ,अष्टमी तिथि में हानी होगी आपको ,खीर की आहुति से लाभ मिलेगा ,ताम्बे के पत्र का दान से लक्ष्मी की प्राप्ति होगी ||
{८}-अष्टमी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो - इष्टदेव आपके शिव हैं ,त्रयोदशी तिथि हानिकारक रहेगी ,सामग्री { शाकल्य }की आहुति से लाभ होगा ,पीतवस्त्र का दान से पद और गरिमा मिलेगी |
{९}-नवमी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो -इष्टदेव आपकी दुर्गा हैं ,तृतीया तिथि हानिकारक रहेगी ,मिष्ठान्न की आहुति से उन्नति होगी ,रक्तवस्त्र का दान से लाभ होगा |
{१०}-दशमी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो -इष्टदेव आपके यमदेव हैं ,दशमी तिथि आपके लिए अहितकर रहेगी,शाकल्य की आहुति से उन्नति होगी ,नीलवस्त्र  का दान से रोग शोक नहीं होंगें ||
{११}एकादशी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो --आपके इष्टदेव विस्वेदेव हैं , सप्तमी तिथि हानिकारक रहेगी ,मोदक की आहुति से लाभ होगा ,पीतवस्त्र का दान से उन्नति होगी |
{१२} द्वादशी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो -इष्टदेव आपके विष्णुदेव हैं ,सप्तमी तिथि हानिकारक रहेगी ,मिष्ठान की आहुति से लाभ होगा ,स्वेत्वस्त्र का दान से उन्नति होगी |
{१३}त्रयोदशी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो-इष्टदेव आपके कामदेव हैं ,दशमी तिथि हानिकारक रहेगी ,दही और शर्करा की आहुति से लाभ होगा ,स्वर्ण का दान से राजयोग बनेगा |
{१४}-चतुर्दशी  तिथि में जन्म हुआ हो तो -- इष्टदेव आपके शिव हैं ,अमावस तिथि हानिकारक रहेगी ,शाकल्य  की आहुति से लाभ होगा,रजत का दान या अभिषेक से उन्नति होगी ||
{१५}पूणिमा तिथि में जन्म हुआ हो तो -आपके इष्टदेव चन्द्रमा हैं ,दही का दान से लाभ होगा ,चंडी का दान से उन्नति होगी |
{१६}-अमावस तिथि में जन्म हुआ हो तो --इष्टदेव आपके पितर हैं,तृतीया तिथि आपके लिए अहितकर रहेगी ,पका अन्न की आहुति से लाभ मिलेगा {खीर },सुन्दर भूदेव को भोजन करने से लाभ होगा ||
-----सभी मित्र बंधू अपनी -अपनी तिथि में जन्म के अनुसार प्रयोग करके देखें अति लाभ होगा ||
--निवेदक -पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री {मेरठ उत्तर प्रदेश }
  निःशुल्क ज्योतिष सेवा रात्रि 8  से .9  ३० तक  प्रत्येक रात्रि सभी मित्रों के लिए उपलब्ध रहती है | हेल्प लाइन के द्वारा यह सेवा प्राप्त करें == 09897701636 ,09358885616 

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मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

"ज्योतिषी एक "टाइम स्पेशलिष्ट "होते हैं ?"



 मैं अपने पूर्वानुमानों को वैज्ञानिक रूप से परिभाषित करता हूँ --जबकि फलित ज्योतिष के अन्य विद्वान ज्योतिष के शास्त्रीय नियमों की चर्चा करते हैं ।सामान्यतः -एक ही ग्रह -स्थिति के प्रभावों को बताते हुए हम भिन्न -भिन्न निष्कर्षों पर पहुचते हैं । इसका कारण ज्योतिष के परम्परिक नियमों की अपनी -अपनी व्याख्या है -----जो  सैधांतिक होते हुए भी प्रमाणिक नहीं कही जा सकती है ।
     ------मेरे विचार से ज्योतिषी टाइम {समय  }का विशेषग्य होता है । वह अनुमानों पर नहीं अपितु परिणामों पर आनेवाले कल की व्याख्या करते हैं --इसलिए मैं स्वयं को वैज्ञानिक ज्योतिषी अथवा "टाइम स्पेशलिष्ट "कहता हूँ  ।।
       भवदीय ---ज्योतिष एवं कर्मकांड विशेग्य {पंडित कन्हैया लाल झा शास्त्री "} किशन पूरी धर्मशाला देहली गेट मेरठ {उत्तर प्रदेश }{ निःशुल्क ज्योतिष सेवा रात्रि ८से ९ रात्रि ,{एकबार] फेसबुक पर कोई भी मित्र बनकर प्राप्त कर सकते हैं  ।नोट --कृपया सिगलन मिलते ही फ़ोन से लाभ लें ,न कि जबाब का इंतजार करें ।
                   ------ संपर्क सूत्र -919358885616+919358885616---------