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शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

कुंडली मिलान का प्रथम "वर्ण "विचार ?-

---जातकों की कुंडली मिलान में सर्व प्रथम "वर्ण का मिलान देखा जाता है --अर्थात जातीय कर्म ,गुण धर्म ,स्वभाव एवं उत्तम प्रीति रहती है ---सही वर्णों के मिलान होने पर ----अन्यथा मध्यम स्नेह और प्रेम का जीवन में आभाव सा रहता है ।
-------कर्कमीनालयोविप्राः सिंहो मेषो धनुर्न्रेपाः ।
           कन्या वृष मृगा वैश्यः शूद्रा युग्म तुला घटाः ।।
  ------भाव =कर्क ,मीन,वृश्चिक ये तीन राशियाँ -ब्राह्मण वर्ण की हैं ।--मेष ,सिंह ,धनु क्षत्रिय वर्ण की ,कन्या ,वृष ,मकर वैश्य वर्ण की और मिथुन ,तुला ,कुम्भ ये तीनो राशियाँ शूद्र वर्ण की शात्रों में कही गई हैं ।
    ----अर्थात ----यदि वर -कन्या समान वर्ण वाली राशियों में जन्मे हों तो उत्तम रहते हैं ---या कन्या से वर का वर्ण उत्तम हो तो अति उत्तम मानते हैं --परन्तु कन्या से वर का हीन वर्ण हो तो --दाम्पत्य जीवन में नीरसता रहती है ।
                 "हीन वर्णों यदा राशि राशीशो वर्ण उत्तमः ।
                  तदा राशीश्वरो ग्राह्यस्तद राशि चैव चिन्तयेत ।।
अतः वर -कन्या में वर्ण दोष होते हुए भी मान्य नहीं है ,क्योंकि रशिशों के स्वामियों की प्रतिकूलता है तो ----।।    नोट --दाम्पत्य जीवन सुन्दर हो इसलिए कुंडली का सही मिलान बहुत ही जरुरी है ---जबकि जोड़ा तो विधाता ने पहले ही बना दिया ?
----प्रेषकः पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री "{मेरठ -भारत }

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