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शनिवार, 10 अगस्त 2013

"वायुकोण और उत्तरदिशा= विचार वास्तु का कैसे करें ?"

"वायुकोण और उत्तरदिशा= विचार वास्तु का कैसे करें ?"
--यूँ तो वास्तु शास्त्र एक अथाह सागर की तरह है फिर भी कुछ न कुछ तो मनोनुकूल निर्माण के समय कर ही सकते हैं |
---वायुकोण ---पश्चिम और उत्तर के मध्य भाग को वायुकोण कहते हैं ---निर्मित भवन की इस दिशा -के देवता "वायुदेव" हैं तथा स्वामी -ग्रह चंद्रमा हैं | यहाँ का तत्व "वायु " है | यह दिशा -मित्र ,राज्य ,रिश्तेदारों के लिए सुख कारक होती है अर्थात भवन में यदि यह दिशा दोष रहित होगी तो ये तमाम सुख मिलेंगें रहने वालों को अन्यथा इन सुखों से रहित हो जाते हैं निवास करने वाले लोग | --इस स्थान का खुला होना उत्तम होता है ,यहाँ के फर्श पर वायु का स्पर्श होना चाहिए | इस दिशा में बगीचा लगाने से लाभ होता है |
 ------उत्तरदिशा ----के देवता -धन के स्वामी श्री कुबेरजी हैं तथा स्वामी ग्रह बुद्धिदाता "बुद्धदेव हैं| यह दिशा भवन में अच्छी होने पर -रहने वालों को धन ,ऐश्वर्य ,संपदा देती है | इस दिशा का फर्श लेवल एवं भवन की ऊँचाई दक्षिण की तुलना में नीची होनी चाहिए | इस दिशा में ढलान होना शुभ रहता है | इस दिशा में दक्षिण के मुकाबले अधिक खाली जगह के साथ -साथ हल्का निर्माण और नदी आदि का जलस्रोत होने से सम्पन्नता बनी रहती है |
-------भाव ---अगर हम भवन का निर्माण कर रहें हैं या करने वाले हैं तो क्यों न वास्तु शास्त्र के अनुकूल करें जो हमें सुखद एवं शांति जीवन प्रदान करें 1 ज्योतिष अगर भविष्य द्रष्टा है तो वास्तु अलौकिक सुख प्रदाता है |
प्रेषकः -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत}-हेल्पलाइन -09358885616 ---

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