वास्तु -अर्थात निवास स्थान की शुद्धि ?"
जिस भूमि पर जीव निवास करते हैं -उसे वास्तु कहा जाता है | वास्तु के शुभाशुभ फल प्राप्ति के लिए -"मत्स्य पुराण-अ०-२५१ में लिखा है कि अंधकासुर के वध के समय भगवान् शंकर के ललाट से -पृथ्वी पर जो स्वेदबिंदु गिरे उनसे एक भयंकर आकृति का पुरुष प्रकट हुआ | जिसने अन्धकगणों का रक्त पान किया-फिर भी अतृप ही रहा | अतृप्त होने के कारण-त्रिलोकी को भक्षण करने के लिए चल दिया | जिसे महादेवादि देवों ने पृथ्वी पर सुलाकर -वास्तु देवता के रूप में प्रतिष्ठित किया और उसके शरीर में सभी देवताओं ने वास किया ,इसलिए वह वास्तुपुरुष या वास्तुदेवता कहलाने लगे | देवताओं ने वास्तुको-गृहनिर्माण आदि के वैश्वदेव बलि के तथा पूजन ,यग्य, यागादी के समय पूजित होने का वर देकर कहाकि -वापी ,कूप ,तड़ाग ,गरी ,मंदिर ,बाग़ बगीचा जीर्णोंधार ,यग्य मंडप ,निर्माणदि के समय -जो तुम्हारी पूजा प्रतिष्ठा अर्चना करेंगें उन्हें सभी प्रकार की सौख्य समृद्धि मिलेगी ||
भाव -आजकल वास्तु दोष का निदान हमलोग अपने तरीके से करने लगे हैं ,जो उचित नहीं है | वास्तु का सही निदान पूजन ही है न कि चमक -धमक | यदि वास्तु अर्थात भूमि कि वो जगह जहाँ हम निवास करते हैं -को ठीक रखना है तो आधुनिक निदान नहीं प्राचीन निदान करें -जो सहज के साथ -साथ लाभदायक भी है ||
भवदीय -ज्योतिष सेवा सदन"झा शास्त्री "{मेरठ -उत्तर प्रदेश }
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