"शारीरिक अवयव और राशि मंडल ?"---
----"ज्योतिष को नेत्र की उपाधि से विभूषित किया गया है| साथ ही हमारे अवयवों पर भी ज्योतिष के ग्रहों का प्रभाव पड़ता है ,यदि कुंडली के किसी भाव में शक्ति विहीन ग्रह हों तो -उस स्थान की पीड़ा हमें सहनी पड़ती है या किसी भाव में बलिष्ठ ग्रह हों - तो -उस स्थान या उस स्थान के अवयव हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं "!!
अस्तु -भचक्र में स्थित १२ राशियों के समस्त राशि -मंडल को एक बृहत् [विराट ] काल पुरुष मानते हुए -मेष को -शिर ,वृष को-मुख ,मिथुन को बाहु तथा गला या बक्षस्थल ,कर्क -को ह्रदय ,सिह को -पेट ,कन्या - राशि को-पेट का नीचे का भाग -कटी [कमर ],तुला को वस्ति ,तथा जननेंद्रिय ,वृश्चिक को गुदा ,धनु को -कुल्हे तथा जांघ ,मकर को घुटने ,कुम्भ को -पिंडलियाँ और मीन को पैर =यह शरीर के बाहरी अवयवों का विभाग है |=भीतरी अवयवों पर भी १२ राशियों का क्रमशः निम्नलिखित प्रकार से आधिपत्य पड़ता है या रहता है ||
[१] मेष -मस्तिक [दिमाग ]|[२]-वृष -कंठ की नली [टांसिल ][३]-मिथुन -फेफड़े [स्वास लेना ][४]-कर्क -पाचन शक्ति[५]-सिह -ह्रदय |[६]-कन्या -अन्तरियां-[पेट के भीतर का निचला भाग ][७]-तुला -गुर्दे[८]-वृश्चिक -मूत्रेंद्रिय ,जननेंद्रिय |[९]धनु -अनायु -मंडल तथा नसें जिनमें रक्त प्रवाहित होता रहता है |[१०]-मकर -हड्डियाँ तथा अंगों के जोड़ |[११]-कुम्भ -रक्त तथा रक्त प्रवाह |[१२]-शारीर में सर्वत्र [सभी जगह ] कफोत्पादन |
-----भाव -जन्म के समय -जिस राशि में शुभ ग्रह होते हैं ,शरीर का वो भाग पुष्ट [सुन्दर ] होता है | तथा जिस भाव में पापग्रह या नीच ग्रह होते हैं -शरीर का उससे से सम्बंधित भाग कृष या रोगयुक्त ,एवं पीड़ित होता है ||
----भवदीय निवेदक "झा शास्त्री"
निःशुल्क "ज्योतिष "सेवा रात्रि ८ से ९ मित्रता से प्राप्त करें ||{एकबार }
संपर्क सूत्र -09897701636,09358885616,
----"ज्योतिष को नेत्र की उपाधि से विभूषित किया गया है| साथ ही हमारे अवयवों पर भी ज्योतिष के ग्रहों का प्रभाव पड़ता है ,यदि कुंडली के किसी भाव में शक्ति विहीन ग्रह हों तो -उस स्थान की पीड़ा हमें सहनी पड़ती है या किसी भाव में बलिष्ठ ग्रह हों - तो -उस स्थान या उस स्थान के अवयव हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं "!!
अस्तु -भचक्र में स्थित १२ राशियों के समस्त राशि -मंडल को एक बृहत् [विराट ] काल पुरुष मानते हुए -मेष को -शिर ,वृष को-मुख ,मिथुन को बाहु तथा गला या बक्षस्थल ,कर्क -को ह्रदय ,सिह को -पेट ,कन्या - राशि को-पेट का नीचे का भाग -कटी [कमर ],तुला को वस्ति ,तथा जननेंद्रिय ,वृश्चिक को गुदा ,धनु को -कुल्हे तथा जांघ ,मकर को घुटने ,कुम्भ को -पिंडलियाँ और मीन को पैर =यह शरीर के बाहरी अवयवों का विभाग है |=भीतरी अवयवों पर भी १२ राशियों का क्रमशः निम्नलिखित प्रकार से आधिपत्य पड़ता है या रहता है ||
[१] मेष -मस्तिक [दिमाग ]|[२]-वृष -कंठ की नली [टांसिल ][३]-मिथुन -फेफड़े [स्वास लेना ][४]-कर्क -पाचन शक्ति[५]-सिह -ह्रदय |[६]-कन्या -अन्तरियां-[पेट के भीतर का निचला भाग ][७]-तुला -गुर्दे[८]-वृश्चिक -मूत्रेंद्रिय ,जननेंद्रिय |[९]धनु -अनायु -मंडल तथा नसें जिनमें रक्त प्रवाहित होता रहता है |[१०]-मकर -हड्डियाँ तथा अंगों के जोड़ |[११]-कुम्भ -रक्त तथा रक्त प्रवाह |[१२]-शारीर में सर्वत्र [सभी जगह ] कफोत्पादन |
-----भाव -जन्म के समय -जिस राशि में शुभ ग्रह होते हैं ,शरीर का वो भाग पुष्ट [सुन्दर ] होता है | तथा जिस भाव में पापग्रह या नीच ग्रह होते हैं -शरीर का उससे से सम्बंधित भाग कृष या रोगयुक्त ,एवं पीड़ित होता है ||
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